शहर में दूध की मिलावट बढ़ रही है। डेयरी से लेकर डेयरी शॉप्स और फेरी वालों तक, मिलावटी दूध की बिक्री लगातार हो रही है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रही है। आश्चर्यजनक है कि स्वास्थ्य विभाग और खाद्य सुरक्षा विभाग इस मुद्दे पर पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। इस मामले में यह प्रतीत हो रहा है कि जिम्मेदार लोग केवल खाद्य आपूर्ति के पक्ष में ही कदम उठा रहे हैं।
यह ध्याननीय है कि शहर में दैनिक आवश्यकता के लगभग 70 से 80 हजार लीटर दूध की खपत है, जबकि दूध का उत्पादन इतना अधिक नहीं है। शहर की संचालित डेयरियों में कुल दूध का उत्पादन केवल लगभग 5-6 हजार लीटर है। इस परिणामस्वरूप, शहरवासी या तो पैकेजड दूध पर निर्भर हैं या फिर गाँवों से दूध लाने वाले फेरी वालों पर, लेकिन इन वेंडर्स ने भी दूध में मिलावट की है।
फेरी वाले विभिन्न दरों पर मिलावटी दूध बेचते हैं, जैसे कि कुछ इसे प्रति लीटर 40 रुपये में बेचते हैं, कुछ 50 रुपये में, और कुछ 60 रुपये में। साफ है कि 40 और 50 रुपये में बेचे जाने वाले दूध में पानी का मिलावट होती है। हालांकि 60 रुपये में बेचे जाने वाले दूध में पानी की मिलावट नहीं है, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। इस प्रकार, मिलावट के बिना दूध प्राप्त करना लगभग असंभव हो रहा है।
खाद्य सुरक्षा विभाग के दावे के बावजूद, वास्तविकता में ये कार्रवाहियाँ आहार आपूर्ति की सीमा तक ही सीमित हैं। हर दिन, शहर में हजारों लीटर मिलावटी दूध का सेवन हो रहा है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
मिलावटी दूध के सेवन से बच्चों को विशेष रूप से नुकसान हो रहा है, और इसके कारण स्वास्थ्य को भी खतरा हो रहा है, इसके बावजूद इस मुद्दे पर कोई सख्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।